- शिवेंद्र श्रीवास्तव- संपादक, लखनऊ।
- योगी का कद बड़ा, पर चाहिए होगा अमित शाह जैसा रणनीतिकार।
- संघ के साथ रिश्तों का संतुलन जरूरी, बीजेपी मे संघ से बाहर कुछ नही।
- योगी एकला चलो वाले नेता। गठबंधन की राजनीति में बैठाना होगा तालमेल।
- दिल्ली की सत्ता मे अभी से ट्रैफिक जाम, योगी को पार करना होगा रास्ता।
योगी आदित्यनाथ—एक ऐसा नाम जो उत्तर प्रदेश की सीमाओं से परे पूरे देश में गूंज रहा है। राजनीति के जानकारो और उनके समर्थकों को लगता है कि नरेंद्र मोदी के बाद बीजेपी की नैया अगर कोई पार लगा सकता है, तो वो हैं योगी आदित्यनाथ। उनकी स्पष्टता, प्रशासनिक क्षमता, कठोर निर्णय लेने का साहस और निडर व्यक्तित्व उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए मजबूत दावेदार बनाते हैं। लेकिन दिल्ली की गद्दी का रास्ता आसान नहीं है। योगी के सामने बड़ी चुनौतियाँ हैं, जिनपर गंभीरता से चर्चा ज़रूरी है।
1. रणनीतिकार की कमी: योगी का सबसे बड़ा चैलेंज
नरेंद्र मोदी की दिल्ली यात्रा अमित शाह की रणनीतियों के बिना संभव नहीं होती। अमित शाह ने मोदी को गुजरात से उठाकर पूरे देश का नेता बनाया। बूथ मैनेजमेंट, चुनावी रणनीति, गठबंधन की राजनीति—हर क्षेत्र में शाह ने बेहतरीन काम किया। योगी आदित्यनाथ की सबसे बड़ी कमी यही है कि उनके पास शाह जैसा रणनीतिकार नहीं है।
लेकिन गौर करने वाली बात ये भी है कि योगी में खुद की निर्णय लेने की क्षमता है। वो साहसी हैं, और आत्मनिर्भर नेता हैं। उनकी यह खूबी उन्हें एक मजबूत नेता के रूप में स्थापित करती है, जो खुद के दम पर फैसले ले सकता है।
2. संघ के साथ संबंध: तालमेल का सवाल
योगी आदित्यनाथ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के रिश्ते हमेशा चर्चा में रहे हैं। संघ बीजेपी का वैचारिक आधार है, लेकिन योगी आदित्यनाथ अपनी स्वतंत्रता और आत्मनिर्भर निर्णयों के लिए जाने जाते हैं। यही वजह है कि संघ उनसे थोड़ा सतर्क रहता है।
हालांकि, संघ को भी पता है कि वर्तमान में बीजेपी के अंदर मोदी के बाद योगी जैसा मजबूत हिंदुत्ववादी और जमीनी नेता दूसरा नहीं है। योगी की हिंदुत्व की स्पष्ट छवि और संघ की विचारधारा में मेल होना योगी को संघ के लिए स्वीकार्य बनाता है, भले ही रिश्तों में कभी-कभी दूरी दिखे।
3. गठबंधन राजनीति की जटिलता
गठबंधन राजनीति में सफल होने के लिए एक नेता को लचीला और दूरदर्शी होना पड़ता है। नरेंद्र मोदी इस कला में माहिर हैं। योगी आदित्यनाथ का सख्त व्यक्तित्व और स्पष्ट एजेंडा गठबंधन की राजनीति में उनके सामने एक बड़ी चुनौती बन सकता है।
लेकिन यह भी सत्य है कि गठबंधन में भी नेतृत्व का स्पष्ट और निर्णायक होना बेहद ज़रूरी है। योगी की यही स्पष्टता गठबंधन को मजबूती भी दे सकती है, क्योंकि आज के दौर में साफ़ और निर्णायक नेतृत्व की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
4. दिल्ली का सियासी जाल और योगी की सादगी
दिल्ली की राजनीति जटिल, उलझी हुई और चालाकी से भरी हुई होती है। इसमें सफलता के लिए राजनैतिक परिपक्वता, अनुभव और समझ चाहिए। योगी आदित्यनाथ इस सियासी जाल के लिए नए हो सकते हैं। उनकी सादगी और स्पष्टता दिल्ली की सियासत में उनके लिए चुनौती हो सकती है।
लेकिन यहीं योगी की एक बड़ी ताकत भी है—उनका ईमानदार और सीधा-सादा व्यक्तित्व। भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और जोड़-तोड़ की राजनीति से परेशान जनता योगी जैसे साफ छवि वाले नेता की प्रतीक्षा कर रही है।
योगी आदित्यनाथ: क्यों प्रधानमंत्री पद के लिए उपयुक्त हैं?
योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में यूपी ने कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है। अपराध नियंत्रण, बुनियादी ढांचे का विकास, निवेश को प्रोत्साहन और निर्णय लेने की गति योगी को प्रधानमंत्री पद के लिए एक योग्य उम्मीदवार बनाते हैं।
उनका स्पष्ट और निर्णायक नेतृत्व भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश के लिए आवश्यक है। वे विकास और राष्ट्रवाद के संयोजन का प्रतीक हैं, जो देश को नई दिशा और ऊर्जा दे सकते हैं।
निष्कर्ष ये है कि चुनौतियाँ निश्चित रूप से बड़ी हैं, पर योगी आदित्यनाथ जैसा निर्णायक, स्पष्टवादी और ईमानदार नेतृत्व देश की वर्तमान राजनीतिक स्थिति में दुर्लभ है। भाजपा को आने वाले समय में योगी जैसे मजबूत नेता की आवश्यकता पड़ेगी। दिल्ली का रास्ता कठिन है, पर असंभव बिल्कुल नहीं। पर गंभीरता से चर्चा ज़रूरी है।










